अक्सर लोगों की ये शिकायत होती है कि किसी निवेश से उन्होंने जिस लाभ की अपेक्षा की थी वास्तविक लाभ (Real Profit) उसे कम आया है। परन्तु वे इसका दोष, सही विकल्प (Option) के चुनाव की जगह, उस निवेश के प्रदर्शन पर ही थोप देते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि हर एक निवेश के विकल्प की अपनी एक प्रकृति (Nature/ Character) होती है और अगर निवेश उसकी प्रकृति को समझे बिना किया जाएगा तो आपके अनुमान के गलत होने की संभावना बढ़ जाती है। दुर्भाग्यवश इस बात का एहसास अंतिम घड़ी (Last Moment) पर होता है और तब कुछ कर नहीं पाते हैं, सिवाय दोषारोपण के।
आइए इस विषय पर विस्त्रत चर्चा करते हैं –
किसी भी निवेश पर आय या लाभ की वृद्धि के लिए दो मुख्य कारक (Factors) होते हैं – मंहगाई (Inflation) और विकास (Growth/ Development), और इनके मिले जुले प्रभाव से हमारे निवेश का आकार बढ़ता रहता है।
अब अगर निवेश केवल ऋण सम्बंधित विकल्पों (Debt Related Options) में करते हैं तो वह केवल मंहगाई से प्रभावित होता है (हालाकि मंहगाई भी विकास से संबद्ध होती है) जबकि अन्य विकल्पों में दोनों का प्रभाव होता है। ऋण सम्बंधित विकल्पों से धन की वृद्धि ब्याज में मिली रकम से होती है जबकि अन्य विकल्पों में निवेश में धन वृद्धि में, विकास और मंहगाई दोनों की भागीदारी होती है। इसलिए निवेश का विकल्प कोई भी हो, निवेश पूर्णतः जोखिम रहित नहीं हो सकता। अगर बाज़ार से संबन्धित निवेश (Market Oriented Investments) हैं तो बाज़ार के उतार चढ़ाव (Market Variation) से संबन्धित जोखिम, और अगर ऋण से सम्बंधित (Debt Oriented) निवेश है तो ब्याज की दर के परिवर्तन (Interest Rate Variation) संबन्धित जोखिम होता है। इसलिए निवेश और जोखिम एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। हम निवेश मे वृद्धि तो चाहते हैं परन्तु बिना किसी जोखिम के, जो कि व्यावहारिक (Practical) नहीं है, इसलिए निवेश की अधिक वृद्धि की चाहत होने पर अधिक जोखिम भी स्वीकार करना आवश्यक होता है। हालाकि एक योजना बद्ध (Planned) तरीके से किया गया निवेश इस जोखिम को काफी हद तक कम भी कर सकता है।
कई निवेश जिन्हें हम जोखिम रहित (Riskless/ Zero Risk) समझते हैं, दरअसल वे पूर्णतः जोखिम रहित नहीं होते हैं, इनमें भी ब्याज की दर के परिवर्तन (Interest Rate Variation) से संबन्धित जोखिम होता है
जैसे –
फ़िक्स्ड डेपोसीट्स (Fixed Deposits FDs)
… अधिक जानकारी के लिए आप मेरा पिछला ब्लॉग पढ़ सकते हैं –
कैसे निर्णय लें – आपको ये निवेश, बैंक/ पोस्टऑफिस फिक्स्ड डिपॉजिट्स (F.Ds.) में करना चाहिए, कि नहीं ? – https://manishkantverma.blogspot.com/2021/12/fds.html
पीपीएफ़ (Public Provident Fund – PPF) – इस वित्त वर्ष (Financial Year) में ब्याज की दर 7.1% है परन्तु अगले वित्त वर्ष (Financial Year) में ये बदल सकती है, और जब तक ये 15 वर्ष पूरे करेगा तब तक ये परिवर्तन कई बार हो सकता है। इसलिए, प्रारम्भिक ब्याज दर को मानक मानकर अगर हम अपने भविष्य में मिलने वाले धन का अनुमान लगाते हैं तो उसमें हमारे अनुमान के गलत होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है। इसी तरह आय कर (Income Tax) के नियम भी बदल सकते हैं, और अगर हमने इस तरह की सभी संभावनाओं के प्रभाव को अपनी वित्तीय योजना (Financial Planning) में समाहित नहीं किया है, तो अनुमानित धन और वास्तविक धन में असमानता होने स्वाभाविक है। कुछ इसी तरह का व्यवहार प्रोविडेंट फ़ंड (Provident Fund PF) का भी हो सकता है।
इसी तरह बाज़ार से संबन्धित निवेश (Market Oriented Investments) भी बहुत सारे कारकों (Factors) पर निर्भर करता है, निवेश का रिटर्न (Return) या शुद्ध लाभ उन सभी कारकों (Factor) के मिले – जुले प्रभाव का परिणाम ही होता है। इसलिए जब तक हर एक कारक (Factor) से होने वाले प्रभाव को हम अपनी वित्तीय योजना (Financial Planning) में समाहित नहीं करते हैं, तब तक हमारे वास्तविक लाभ (Real Profit) अनुमानित लाभ (Anticipated Profit) में अंतर बना रहता है। इस अंतर को कम करने के लिए कारकों (Factors) और उनके प्रभाव को समझना आवश्यक है।
आइए कुछ मुख्य कारक और उनके प्रभावों पर एक नज़र डालते हैं –
निवेश को कितने समय तक के लिए आप ने निवेशित रहने के लिए छोड़ा है, बहुत अहम भूमिका अदा करता है। ऋण सम्बंधित विकल्पों (Debt Related Options) मे बहुत लम्बे समय तक निवेशित रहने से ब्याज की दर के परिवर्तन (Interest Rate Variation) से संबन्धित जोखिम बढ़ जाता है जबकि बाज़ार से संबन्धित निवेश (Market Oriented Investments) में लम्बा समय, इस जोखिम को कम कर सकता है।
जैसे 15 वर्ष के अंतराल में ब्याज की दरों (Rate of Interest) मे काफी परिवर्तन हो सकता है चाहे वह कितना भी भरोसेमंद विकल्प जैसे PPF ही क्यों न हो। आज के प्रचलन को देखें, तो भविष्य में ब्याज के कम होने की संभावना ज्यादा है और इसीलिए ऋण सम्बंधित (Debt Related) विकल्पों में निवेश करते समय इस तथ्य (Aspect) को ध्यान में रखना आवश्यक हो जाता है। इस तथ्य को ध्यान मे रखकर किया गया आकलन आपको अंततः मिलने वाले धन के काफी समीप ले जा सकता है।
परंतु म्यूचुअल फ़ंड (Mutual Fund) या इक्विटि शेयर (Equity Shares) के निवेश को कम समय तक निवेशित रहने में अधिक विचलन (Volatility) की संभावना होती है, जिससे हमारे आकलन के गलत होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है। परन्तु अगर निवेशित रहने का समय लम्बा होगा तो ये विचलन (Volatility) काफी हद तक सपाट (Flat/ Smooth) हो जाता है, और हमारे आकलन के सही होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है।
इसलिए निवेश का विकल्प चुनते समय, निवेशित रहने का समय, एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इस तरह से निवेश के विकल्प का, उसके निवेश की अवधि के साथ असंतुलन होने पर, वास्तविक लाभ (Real Profit) अनुमानित लाभ (Anticipated Profit) से कम हो सकता है।
उदाहरण के लिए अगर आपने इक्विटि म्यूचुअल फ़ंड (Equity Mutual Fund) में निवेश किया है और मात्र 2 – 3 वर्ष के बाद आप अपने निवेश से लाभ चाहते हैं, परन्तु उस समय यदि बाज़ार गिरा हुआ है तो हो सकता है आपके निवेश की कीमत आपके मूलधन से भी कम हो गई हो। पर अगर आप 7 – 8 वर्ष के बाद की स्थिति देखेंगे तो ये संभावना बहुत कम होगी। इसलिए अगर आप लम्बे समय तक निवेशित नहीं रह सकते हैं तो इक्विटि म्यूचुअल फ़ंड मे किए गए निवेश में जोखिम रहेगा।
हम किसी भी निवेश के विकल्प को चुनते समय उसके पिछले प्रदर्शन को बहुत महत्व देते हैं, परन्तु ये भूल जाते हैं कि उसका पिछला प्रदर्शन उस समय के आर्थिक परिदृश्य (Economic Scenario) में था। आज का या भविष्य का आर्थिक परिदृश्य (Economic Scenario) ठीक वैसा ही रहेगा, जरूरी नहीं है। किसी भी निवेश की वृद्धि आर्थिक परिदृश्य (Economic Scenario) पर निर्भर करती है, अगर माहौल उसकी वृद्धि के अनुकूल होता है तो वृद्धि अधिक होती है परन्तु प्रतिकूल होने पर वृद्धि कम होती है इसलिए भविष्य की वृद्धि, भविष्य के आर्थिक परिदृश्य (Economic Scenario) पर निर्भर होगी।
जैसे एक समय, FD पर ब्याज की दर 10% सालाना से ऊपर हुआ करती थी, जो आज घटकर 5.50% के आसपास रह गई है। इसी तरह म्यूचुअल फंड्ज का रिटर्न पिछले 1 वर्ष मे 20% से भी अधिक मिला है, जो कि इसके पिछले प्रदर्शन के काफी ज्यादा है, परन्तु यही क्रम जारी रहेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। इसलिए पिछला या वर्तमान प्रदर्शन एक दिशा निर्देश (Directionally/ Guide) की तरह उपयोग करना तक उचित होता है, परन्तु सारा निर्णय उसी के भरोसे ले लेना घातक हो सकता है। इसलिए ये जरूरी होता है कि हम उसके पिछले या वर्तमान प्रदर्शन के कारकों के समझें और भविष्य के संभावित कारकों को ध्यान मे रखते हुए वृद्धि दर का आकलन करें। निवेश के विकल्प पर भविष्य में होने वाले आर्थिक परिदृश्य (Economic Scenario) के बदलाव के प्रभाव का आकलन गलत होने पर, वास्तविक लाभ (Real Profit) अनुमानित लाभ (Anticipated Profit) से कम हो सकता है।
उदाहरण के लिए, अभी पिछले 1 – 2 वर्षों में इक्विटि म्यूचुअल फ़ंड ने बहुत अच्छा लाभ (Return) दिया है परन्तु यही प्रचलन जारी रहेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है और इसलिए अगर हम अपने निवेश के लाभ का आकलन, केवल इन 1 – 2 वर्षों के प्रदर्शन के आधार पर करेंगे तो हमारा अनुमान गलत हो सकता है।
जब निवेश की वृद्धि की दर तेज़ होती है तो हम उस विकल्प से जुड़े जोखिमों को नज़रअंदाज़ कर जाते हैं परन्तु जैसे ही वृद्धि, कमी में बदलने लगती है, हमें जोखिम का अहसास होने लगता है, परन्तु तब तक देर हो चुकी रहती है और हम कुछ पैसा गंवा चुके होते हैं। अक्सर इस तरह की गलती का प्रमुख कारण उस विकल्प में संबद्ध जोखिम को समझ न पाना होता है।
ब्याज की दर में परिवर्तन का प्रभाव दीर्घकालीन निवेश (Long-term Investment) पर ज्यादा होता है और बाजार से सम्बंधित जोखिम का असर लघुकालीन निवेश (Short-term Investment) पर ज्यादा होता है। जब हमारे निवेश इन बातों को ध्यान में रखकर जाते हैं तो जोखिम कम होता है, परन्तु अगर हम दोनों को आपस में बदल कर निवेश करते हैं तो हमारा जोखिम बहुत बढ़ जाता है। फलस्वरूप हमारे निवेश में अनुमानित जोखिम से अधिक जोखिम समाहित हो जाता है, और इसलिए वास्तविक लाभ (Real Profit) अनुमानित लाभ (Anticipated Profit) से कम हो सकता है।
जैसे पिछले कई वर्षों से ब्याज की दर में लगातार गिरावट हो रही है और अगर हम कोई लम्बे अंतराल के निवेश की योजना में आज की ब्याज दर को आने वाले कई वर्षों के लिए प्रभावी मान लेते हैं तो हमारा अनुमान गलत हो सकता है, जबकि छोटे अंतराल मे सही होने की संभावना ज्यादा है।
अधिकतर निवेश किसी न किसी रूप में टैक्स की देनदारी (Tax Liability) से युक्त (Attached) होते हैं, और जो आज इस देनदारी से मुक्त हैं वो भी भविष्य में इस की देनदारी के घेरे में आ सकते हैं। इसलिए किसी भी विकल्प को टैक्स की देनदारी मुक्त नहीं समझना चाहिए। इसी तरह आज के टैक्स की दर में भी भविष्य में परिवर्तन हो सकता है और इससे टैक्स की एक अतिरिक्त देनदारी (Additional Liability of Tax) भी आ सकती है। इसलिए भविष्य में हमारे निवेश पर लाभ तीनों में से किसी भी स्थिति से पींड़ित (Suffer) हो सकता है –
अब अगर देनदारी नहीं आयी तो निवेश का लाभ बढ़ जायेगा परन्तु अगर आ गयी या जितनी अपेक्षित (Expected) थी उससे ज्यादा आ गयी तो अंतिम समय पर लाभ में हुई कमी अखर सकती है। इसलिए टैक्स की देनदारी को हमेशा निवेश के लाभ का एक हिस्सा मानकर चलना ही उचित होता है, इससे वास्तविक लाभ (Real Profit) अनुमानित लाभ (Anticipated Profit) से कम नहीं हो पायेगा।
निष्कर्ष (Conclusion) –
किसी भी निवेश के लाभ का आकलन (Estimation) करने के लिए आवश्यक होता है हम उस निवेश की बारीकियों को समझें। जोखिम हर निवेश में होते हैं परन्तु यथोचित उपाय (Mitigation) उस की तीव्रता (Impact) को कम कर सकते हैं। इनमे सही विकल्प (Option) का चुनाव के साथ साथ उस निवेश विशेष से जुड़े दिशा निर्देशों (Direction/ Guidance) का पालन करना (Following / Obeying) भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है। निवेश के लाभ का आकलन करते समय, लाभ का कुछ भाग अवश्य ही छोड़कर रख देना चाहिए जो उन सभी अनपेक्षित देनदारियों (Unexpected Payments/ Fund Loss) को संभाल कर सके जिनकी हमने कल्पना नहीं की थी।
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